मंदिर के सामने के दरवाजे से थोड़ी दूर पर ही मोहनदासजी की समाधि है, जहां कानीबाई की मृत्यु के बाद उन्होंने जीवित-समाधि ले ली थी। पास ही कानीबाई की भी समाधि है ।
View Moreसीकर के रुल्याणी ग्राम के निवासी पं. लछीरामजी पाटोदिया के सबसे छोटे पुत्र मोहनदास बचपन से ही संत प्रवृत्ति के थे। सतसंग और पूजन-अर्चन में शुरू से ही उनका मन रमता था। उनके जन्म के समय ही ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि आगे चलकर यह बालक तेजस्वी संत बनेगा और दुनिया में इसका नाम होगा। मोहनदास की बहन कान्ही का विवाह सालासर ग्राम में हुआ था। एकमात्र पुत्र उदय के जन्म के कुछ समय पश्चात् ही वह विधवा हो गई।
View Moreसालासर में स्थित अंजनी माता का प्रसिद्ध मंदिर केवल राजस्थान ही नहीं पूरे भारत के श्रद्धालुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है। श्री अञनी माता का मन्दिर सालासर धाम से लक्षमनगढ जाने वाली रोड पर लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर में माँ की जो मूर्ति स्थापित है
View Moreसमस्त कष्टों के निवारण के लिए हनुमानजी को यंत्र साधना के द्वारा भी प्रसन्न किया जा सकता है। क्योंकि इनमंर स्वयं हनुमानजी विराजमान रहते हैं। इसके लिए प्रातः नित्यकर्मों से निवृत होकर एवं स्नान करने के बाद लाल वस्त्र पहनें।
View More